धार्मिक ही नहीं साहित्य और पर्यटन का सांस्कृतिक आयोजन भी है महाकुंभ

Maha Kumbh is not only a religious event but also a cultural event of literature and tourism
 
धार्मिक ही नहीं साहित्य और पर्यटन का सांस्कृतिक आयोजन भी है महाकुंभ 
(विवेक रंजन श्रीवास्तव-विभूति फीचर्स) भारतीय संस्कृति वैज्ञानिक दृष्टि तथा एक विचार के साथ विकसित हुई है।बारह ज्योतिर्लिंग, इक्यावन शक्ति पीठ,बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम के चारों धाम के दर्शनों के अतिरिक्त हमारी संस्कृति में नदियों के संगम स्थलों पर मकर संक्रांति, चंद्र ग्रहण व सूर्यग्रहण के अवसरों पर पवित्र स्नान की भी परम्परायें हैं। चित्रकूट व गिरिराज पर्वतों की परिक्रमा,नर्मदा नदी की परिक्रमा जैसे अद्भुत उदाहरण हमारी धार्मिक आस्था की विविधता के साथ पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रामाणिक द्योतक हैं ।

Maha Kumbh is not only a religious event but also a cultural event of literature and tourism
हरिद्वार , प्रयाग , नासिक तथा उज्जैन में  आयोजित होते कुंभ के मेले तो मूलतः स्नान से मिलने वाली शारीरिक तथा मानसिक  शुचिता को ही केंद्र में रखकर निर्धारित किये गये हैं। साथ ही ये पर्यटन को धार्मिकता से जोड़े जाने के विलक्षण उदाहरण हैं । ऐसे में स्नान को केंद्र में रखकर ही  महाकुंभ जैसा विशाल और अद्भुत पर्व मनाया जा रहा है,जो हजारों वर्षो से हमारी संस्कृति का हिस्सा है।पीढ़ियों से जनमानस की धार्मिक भावनायें और आस्था कुंभ स्नान से जुड़ी हुई हैं। प्रयागराज के नैसर्गिक महत्व तथा माँ गंगा,यमुना और अदृश्य सरस्वती के अनुपम संगम के कारण प्रयाग कुंभ सदैव विशिष्ट ही रहा है।


      प्रश्न है कि क्या कुंभ स्नान को मेले का स्वरूप देने के पीछे केवल नदी में डुबकी लगाना ही हमारे मनीषियों का उद्देश्य रहा होगा ? इस तरह के आयोजनों को नियमित अंतराल पर निरंतर स्वस्फूर्त आयोजन करने की व्यवस्था बनाने का निहितार्थ समझने की आवश्यकता है। आज तो लोकतांत्रिक शासन है, हमारी ही चुनी हुई सरकारें हैं जो जनहितकारी व्यवस्था महाकुंभ हेतु कर रही है पर कुंभ के मेलों ने तो पराधीनता के युग भी देखे हैं,आक्रांता बादशाहों के समय में भी कुंभ संपन्न हुये हैं और इतिहास गवाह है कि तब भी तत्कालीन प्रशासनिक तंत्र को इन भव्य आयोजनों का व्यवस्था पक्ष देखना ही पड़ा। समाज और शासन को जोड़ने का यह उदाहरण शोधार्थियों की रुचि का विषय हो सकता है। वास्तव में कुंभ स्नान शुचिता का प्रतीक है, शारीरिक और मानसिक शुचिता का। जो साधु संतो के अखाड़े इन मेलों में एकत्रित होते हैं वहां सत्संग होता है , गुरु दीक्षायें दी जाती हैं।इन मेलों के माध्यम से आध्यात्मिक उन्नयन के लिये जनमानस तरह तरह के व्रत , संकल्प और प्रयास करता है।धार्मिक यात्रायें होती हैं। लोगों का मिलना जुलना , वैचारिक आदान प्रदान हो पाता है।धार्मिक पर्यटन हमारी संस्कृति की विशिष्टता है। पर्यटन  नये अनुभव देता है साहित्य तथा नव विचारों को जन्म देता है,हजारों वर्षो से अनेक आक्रांताओं के हस्तक्षेप के बाद भी भारतीय संस्कृति अपने मूल्यों के साथ इन्ही मेलों समागमों से उत्पन्न अमृत ऊर्जा से ही अक्षुण्य बनी हुई है।


     जब ऐसे विशाल,महीने भर की अवधि तक चलने वाले भव्य आयोजन संपन्न होते हैं तो जन सैलाब जुटता है। स्वाभाविक रूप से वहां धार्मिक सांस्कृतिक नृत्य ,नाटक मण्डलियों के आयोजन भी होते हैं ,कला  विकसित होती है।  प्रिंट मीडिया  व आभासी दुनिया के संचार संसाधनो में आज  इस आयोजन की  व्यापक चर्चा हो रही  है। लगभग हर अखबार प्रतिदिन कुंभ की खबरों तथा संबंधित साहित्य के परिशिष्ट से भरा दिखता है। अनेक पत्रिकाओं ने तो कुंभ के विशेषांक ही निकाले हैं। कुंभ पर केंद्रित वैचारिक संगोष्ठियां हो रही  हैं,जिनमें साधु संतो , मनीषियों और जन सामान्य की , साहित्यकारों , लेखकों तथा कवियों की भागीदारी से विकीपीडिया और साहित्य संसार लाभान्वित हुआ है। कुंभ के बहाने साहित्यकारों,चिंतकों को आंचलिक, सामाजिक परिवर्तनों की समीक्षा का अवसर मिलता है।विगत के अच्छे बुरे के आकलन के साथ साथ भविष्य की योजनायें प्रस्तुत करने तथा देश व समाज के विकास की रणनीति तय करने, समय के साक्षी विद्वानों, साधु संतों, मठाधीशों के परस्पर शास्त्रार्थो के निचोड़ से समाज को लाभान्वित करने का मौका यह आयोजन सुलभ करवाता है। क्षेत्र का विकास होता है,व्यापार के अवसर बढ़ते हैं।


 कुंभ सदा से धार्मिक ही नहीं एक साहित्य और पर्यटन का सांस्कृतिक आयोजन रहा है और भविष्य में तकनीक के विकास के साथ और भी वृहद बनता जायेगा। इस वर्ष प्रयाग का कुंभ नये चैलेंज लिये आयोजित हो रहा है , हम सब की नैतिक व धार्मिक सामाजिक जिम्मेदारी है कि हम स्वयं का ख्याल व सावधानियां रखते हुये ही कुंभ स्नान व आयोजन में सहभागिता करें , क्योंकि यदि मन चंगा तो कठौती में गंगा।और मन तभी चंगा रह सकता है जब शरीर चंगा रहे । 
प्रयागराज में आयोजित हो रहा महाकुंभ इसी धार्मिक पर्यटन, सांस्कृतिक कार्यों की हमारी विरासत का साक्षी बना हुआ है। (विभूति फीचर्स)(विवेक रंजन श्रीवास्तव-विभूति फीचर्स)


        

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