Akshaya Tritiya 2024 : अक्षय तृतीया क्यों मनाया जाता है?
Akshaya Tritiya 2024 In Hindi
Akshaya Tritiya Story
Akshaya Tritiya Kab Hai
Akshaya tritiya 2024 : भारतीय संस्कृति में वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का बड़ा महत्व है l इसे अक्षय तृतीया या आखातीज भी कहा जाता है l पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी कार्य किया जाता है उसका अक्षय फल मिलता है इसलिए इसे अक्षय तृतीया कहते हैं l अक्षय तृतीया का दिन स्वयं सिद्ध मुहूर्त होता है lइस दिन किसी भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश ,वाहन, जमीन ,आभूषण की खरीदारी आदि किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग को देखने की जरुरत नहीं पड़ती l
अक्षय तृतीया की कहानी क्या है?
जैन दर्शन में इसे श्रवण संस्कृति के साथ युग का प्रारंभ माना जाता है l जैन दर्शन के अनुसार भरत क्षेत्र में इस समय भोगभूमि का काल पूर्ण होकर कर्मभूमि का काल प्रारंभ हो गया था l भोगभूमि में दस कल्पवृक्ष होते थे जो मनुष्य की सभी आवश्यकताओं को पूर्ण करते थे l और इंसान को कोई काम नहीं करना पड़ता था l लेकिन धीरे-धीरे काल के प्रभाव की वजह से यह कल्पवृक्ष लुप्त होते चले गए और मनुष्य के सामने भूख प्यास ,गर्मी सर्दी और बीमारियों जैसी समस्याएं आना शुरू हो गईं l ऐसे समय में राजा ऋषभदेव या भगवान आदिनाथ ने संसारी रहते हुए प्रजाजनों को असी ,मसी, कृषि, विद्या,वाणिज्य,शिल्प, छह उपाय बताएं l इन्हें षटकर्म कहा गया l
राजा ऋषभदेव ने प्रजा को योग एवं क्षेम के नियम ( नवीन वस्तु की प्राप्ति तथा प्राप्त वस्तु की रक्षा) बताएं l गन्ने के रस का उपयोग करना बताया l खेती के लिए बैल का प्रयोग करना सिखाया l इसीलिए ऋषभनाथ को वृषभनाथ , आदि पुरुष और युग प्रवर्तक भी कहा जाता है l एक बार जब महाराज ऋषभदेव के जन्मदिन का उत्सव मनाया जा रहा था l स्वर्ग की अप्सराएँ नृत्य कर रही थी l उनमें एक मुख्य अप्सरा नीलांजना नृत्य करते-करते मृत्यु को प्राप्त हो गई क्योंकि उसकी आयु पूर्ण हो गई थी l यह देखकर राजा ऋषभदेव को वैराग्य हो गया तबउन्होंने अपने सबसे बड़े पुत्र भरत का राज्याभिषेक कर दीक्षा ले ली l
अक्षय तृतीया पर हमें क्या करना चाहिए?
अयोध्या से दूर सिद्धार्थ नामक वन में पवित्रशिला पर विराजकर छह माह का मौन लेकर उपवास और तपस्या की l जब छह माह का ध्यान योग समाप्त हुआ तो वे आहार के लिए निकल पड़े l जैन दर्शन में श्रावकों द्वारा मुनियों को आहार दान दिया जाता है परंतु उस समय किसी को भी आहारचर्या का ज्ञान नहीं था l जिसके कारण सात माह तक उन्हें निराहार रहना पड़ा l भ्रमण करते हुए मुनि आदिनाथ वैशाख शुक्ल तीज के दिन हस्तिनापुर में पहुंचे l वहां का राजा सोमयश मुनि आदिनाथ का पौत्र था l राजा सोम और उनके पुत्र श्रेयांश कुमार ने रात्रि में एक सपना देखा जिससे उन्हें अपने पिछले भव के मुनि को आहार देने की चर्या का स्मरण हो आया l
उन्होंने आदिनाथ को पहचान लिया और शुद्ध आहार के रूप में महाराज को प्रथम आहार गन्ने के रस का दिया l भगवान ने दोनों हाथों की अंजलि बनाकर खड़े रहकर उसमें गन्ने का रस इक्षारस का आहार लिया और अपने व्रत का पारायण किया l इसे पारणा भी कहा जाता है l हस्तिनापुर में आज भी एक पारणा मंदिर बना हुआ है l मुनि श्री आदिनाथ ने लगभग 400 दिवस के पश्चात पारायण किया था l जो एक वर्ष से भी अधिक की अवधि थी l इसे जैन धर्म में वर्षीतप के नाम से भी जाना जाता है l आज भी जैन अनुयायी वर्षीतप करते हैं l यह व्रत प्रतिवर्ष कार्तिक के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से प्रारंभ होता है l और दूसरे वर्ष वैशाख के शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया के दिन पारायण कर उसकी पूर्णता की जाती है l
अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है?
ऐसे में श्रावक प्रति मास चौदस को ही उपवास करता है l और उपवास के बाद व्रत का पारायण भी करता है l इसीलिए तब से लेकर आज तक जैन मुनियों द्वारा खड़े होकर और अपनी अंजलि में लेकर खाना खाने की परंपरा चलती आई है. और वैशाख शुक्ल तृतीया के इसी दिन को ही अक्षय तृतीया भी कहते हैं l इस समय से ही आर्यखंड में आहार दान की प्रथा चालू हुई l हमारे देश में आज भी जैन धर्म के हजारों अनुयाई वर्षी तपश्चार्य करते हैं l यह व्रत संयमी जीवन यापन करने के लिए , मन को शांत करते ,विचारों में शुद्धता और कर्मों में धार्मिक कार्यों में रुचि उत्पन्न करते हैं l मन ,वचन एवं श्रद्धा से वर्षीतप करने वालों को महान समझा जाता है l यही कारण है की जैन धर्म में आज भी अक्षय तृतीया का एक विशेष धार्मिक महत्व है.
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार भी अक्षय तृतीया का बहुत महत्व है l स्कंद पुराण और भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार लिया था l इस दिन परशुराम की जयंती पूरे देश में बड़े धूमधाम से बनाई जाती है l हिंदू धर्म के अनुयाई अक्षय तृतीया के दिन गंगा में स्नान करके विधि पूर्वक देवी देवताओं विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं l ब्राह्मणों को दान देते हैं l बुंदेलखंड ,राजस्थान, मालवा आदि अलग-अलग प्रांतों में अक्षय तृतीया का उत्सव भी अलग-अलग लोक परंपरा के अनुसार मनाया जाता है l आज के दिन बसंत ऋतु का समापन और ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत मानी जाती है l पुराणों के मुताबिक सतयुग युग और त्रेता युग का प्रारंभ और द्वापर युग का अंत भी इसी तिथि को हुआ l