मुख्यमंत्री मोहन दिलाएंगे मनमोहन मुरली वाले से मध्य प्रदेश को नई पहचान

Chief Minister Mohan will give a new identity to Madhya Pradesh through Manmohan Murli Wale
मुख्यमंत्री मोहन दिलाएंगे मनमोहन मुरली वाले से मध्य प्रदेश को नई पहचान
(पवन वर्मा-विनायक फीचर्स) भगवान मनमोहन श्रीकृष्ण के कारण देश में अब तक मथुरा, वृंदावन, द्वारका, बेटद्वारका,नाथद्वारा,और महाभारत की युद्ध भूमि कुरुक्षेत्र खासे चर्चित और धार्मिक स्थल के रूप में विख्यात और विकसित हुए हैं।भगवान श्रीकृष्ण और मध्यप्रदेश की पावन भूमि का रिश्ता भी अटूट और अनंत हैं। जिसका उल्लेख विभिन्न धार्मिक ग्रंथों एवं पुराणों में भी विस्तार से मिलता है। भगवान मुरलीधर नंदकिशोर ने मध्यप्रदेश में लंबा समय बिताया, उनकी शिक्षा दीक्षा भी यहीं पर हुई लेकिन मध्यप्रदेश भगवान कृष्ण के उस अलौकिक समय को लगभग भूल ही गया था

भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के स्थलों को मध्य प्रदेश सरकार तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करने का निर्णय ले चुकी

अब समय बदल रहा है और  यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि भगवान भूतभावन महाकाल(उज्जैन),ओंकार- मांधाता(ओंकारेश्वर) ,भगवान राम(ओरछा), देवी शारदा(मैहर),माता बगुलामुखी(नलखेड़ा, आगर मालवा) और मां पीताम्बरा (दतिया)के साथ ही अब भगवान श्रीकृष्ण मनमोहन मुरली वाले से भी मध्यप्रदेश को नई पहचान मिलने जा रही है।अब श्रीकृष्ण से भी मध्यप्रदेश जाना और पहचाना जाए इसका बीड़ा उठाया है मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने।

मध्यप्रदेश और योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण का बड़ा ही अद्भुत रिश्ता रहा है।।इसके कई जीवंत उदाहरण भी हैं। इस रिश्ते को और व्यापक प्रचार प्रसार देने के लिए प्रदेश में अब श्रीकृष्ण पाथेय प्रोजेक्ट की शुरूआत होने वाली है। इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के स्थलों को मध्य प्रदेश सरकार तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करने का निर्णय ले चुकी है।इस प्रोजेक्ट के जरिए श्रीकृष्ण के तीन हजार से ज्यादा मंदिरों का रख रखाव किया जाएगा।सांदीपनि गुरूकुल की पुनर्स्थापना भी की जाएगी। यह वह जगह है जहां पर भगवान श्रीकृष्ण ने शिक्षा प्राप्त की थी। इस गुरूकुल में 64 प्रकार की कलाओं की शिक्षा दी जाने की योजना प्रदेश सरकार की है।

भगवान श्रीकृष्ण ने विनम्र भाव से भगवान परशुराम से सुदर्शन चक्र लिया था

शिक्षा के अलावा संस्कृति पर भी यहां पर ध्यान दिया जाएगा। गुरुकुल में खेती से संबंधित कार्य होंगे, गोवंश का पालन पोषण भी यहां पर किया जाएगा। पौराणिक कथाओं और जानकारों के अनुसार सांदीपनि आश्रम के साथ ही इंदौर के जानापाव में भी भगवान श्रीकृष्ण आए थे। भगवान परशुराम की जन्मभूमि जानापाव में ही भगवान श्रीकृष्ण ने विनम्र भाव से भगवान परशुराम से सुदर्शन चक्र लिया था। मध्यप्रदेश में श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता हुई थी,इसके अलावा मध्यप्रदेश की महिदपुर तहसील के ग्राम नारायणा को कृष्ण-सुदामा मैत्री स्थल के रुप में जाना जाता है।यहीं के ग्राम चिरमिया में स्वर्ण गिरि पर्वत पर भी कृष्ण और सुदामा के चरण चिन्ह हैं।धार जिले के अमझेरा में रुक्मिणी हरण स्थल है। कहा जाता है कि यहां के अंबिकालय(अमका-झमका माता मंदिर) से भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी हरण किया था।यानि मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र  में भगवान श्रीकृष्ण के कई बार चरण पडे़।

उज्जैन में श्रीकृष्ण के दर्शन मात्र से यमलोक नहीं देखना पड़ता

स्कन्दपुराण में भी भगवान श्रीकृष्ण और उनके भाई बलराम का उल्लेख उज्जैन को लेकर मिलता है। स्कन्दपुराण के आवन्त्यखण्ड-आवन्तीक्षेत्र-माहात्म्य के अंक पाद तीर्थ महिमा में इसका पूरा उल्लेख है। जिसमें बताया गया है कि अवन्ति जो अब उज्जैन है, में अंकपाद तीर्थ में भगवान श्रीकृष्ण और श्रीबलराम दोनों के दर्शन करने से मनुष्य को यमलोक नहीं देखना पड़ता। वह बैकुण्ठधाम में निवास करता है। क्षिप्रा में स्नान करने के बाद युगल अंक पादों (भगवान श्री कृष्ण के चरण चिन्ह)का दर्शन करके  श्रीकृष्ण और बलराम का दर्शन किया जाता है।वैसे उज्जैनवासियों के अनुसार सांदीपनि आश्रम के नजदीक स्थित अंकपात नामक स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण अपनी अंक पट्टिका(स्लेट)धोते थे,यहां उनके अंक गिरे इसलिए यह स्थान अंकपात कहलाया।

अपने नाना के कहने पर आए थे उज्जैन

स्कन्दपुराण  में यह भी उल्लेख है कि श्रीकृष्ण अपने नाना उग्रसेन के कहने पर विद्या अध्ययन के लिए उज्जैन आए थे। अंक पाद तीर्थ की महिमा में वर्णन है कि श्रीकृष्ण ने कंस और चाणूर को मारकर अपने नाना उग्रसेन का अभिषेक किया और पूछा, किअब मेरे लिए क्या आज्ञा है?इस पर राजा उग्रसेन ने कहा कि कृष्ण मेरा सब कार्य सिद्ध है, अब तुम दोनों कृष्ण और बलराम उज्जयिनी पुरी में जाकर विद्या पढ़ो। राजा का यह आदेश पाकर कृष्ण और बलराम आचार्य सांदीपनि मुनि के घर गए और उनसे विद्या ग्रहण की।

चौंसठ दिन-रात में सारा ज्ञान प्राप्त किया

स्कन्दपुराण के आवन्त्यखण्ड-आवन्तीक्षेत्र-माहात्म्य के अंक पाद तीर्थ महिमा में यह भी वर्णन है कि श्रीकृष्ण और बलराम ने कितने दिन और रात में पूरा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। स्कन्दपुराण के अनुसार सांदीपनि आश्रम में जाकर उन्होंने चारों वेदों को कण्ठस्थ किया, सम्पूर्ण आचार-विचार का ज्ञान प्राप्त किया और रहस्य तथा संहार सहित धनुर्वेद की शिक्षा प्राप्त की और यह सारा ज्ञान मात्र चौंसठ दिन-रात में ही श्रीकृष्ण और बलराम ने प्राप्त कर लिया था।उस समय उज्जैन को अवंतिका के नाम से जाना जाता था और यहां पर राजमाता देवीराजा जयसिंह की पत्नी का शासन था। वासुदेव उन्हें अपनी मुंहबोली बहन कहते थे। इस हिसाब से वह श्री कृष्ण की बुआ थी। लगभग 5266 साल पहले श्री कृष्ण अपने भाई बलराम के साथ पैदल मथुरा से उज्जैन पहुंचे। उस समय उनकी उम्र 11 साल 7 दिन थी। 64 दिनों तक उन्होंने महर्षि सांदीपनि से 64 कलाएं सीखी। 4 दिन में चार वेद, 16 दिन में 16 विधाएं ,6 दिन में छह शास्त्र, 18 दिन में 18 पुराण और 20 दिन में उन्होंने गीता का समस्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था।

भगवान महाकाल ने दिए थे साक्षात दर्शन

स्कन्दपुराण के इसी खंड़ में बताया गया है कि सांदीपनि मुनि ने श्रीकृष्ण और बलराम के ज्ञान प्राप्त करने के असम्भव और अलौकिक कर्म देखकर यह आभास किया कि साक्षात सूर्य और चंद्रमा उनके यहां पर आए हैं। इसके बाद वे अपने शिष्यों के साथ स्नान करने के लिए महाकाल तीर्थ में गए। इन शिष्यों में श्रीकृष्ण और बलराम भी थे। जब दोनों भाईयों ने भगवान महाकाल को प्रणाम किया तब महाकाल साक्षात प्रकट  होकर बोले थे, तुम सम्पूर्ण देवताओं के स्वामी हो। अब तुम दोनों को मुनियों, सिद्धों और देवताओं का पालन करना चाहिए।

मध्यप्रदेश की महिदपुर तहसील के ग्राम नारायणा में भगवान श्रीकृष्ण व सुदामा का मैत्री स्थल है

जनश्रुतियों के अनुसार उज्जैन के सांदीपनि आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा जी के साथ शिक्षा ग्रहण की थी।मध्यप्रदेश की महिदपुर तहसील के ग्राम नारायणा में भगवान श्रीकृष्ण व सुदामा का मैत्री स्थल है। इसी के समीप महिदपुर तहसील के ग्राम चिरमिया में  स्वर्ण गिरी पर्वत स्थित है। धार्मिक व पौराणिक मान्यता के अनुसार गुरुमाता के आदेश पर श्रीकृष्ण व सुदामा भोजनशाला के लिए इसी स्वर्ण गिरी पर्वत पर लकड़ियां लेने आए थे। इस तरह मध्यप्रदेश भी भगवान कृष्ण की लीलाओं का साक्षी रहा है और भगवान कृष्ण की ही यह अद्भुत लीला है कि अब यहां राम वन गमन पथ की तरह ही श्री कृष्ण पाथेय भी बन रहा है और इसे बनाने का भार उठाया है भगवान कृष्ण के ही एक लोकप्रिय नाम वाले मुख्यमंत्री मोहन यादव ने।

Share this story