Navratri 2024 Kanya Pujan, Date, Time, Pujan Vidhi: नवरात्रि में कन्या पूजन कब करें, क्यों है जरूरी, जानिए पौराणिक मान्यता?


 

Kanya Bhoj Kab Karwaya Jata Hai?
 

Kanya Bhoj Ka Mahatva

Kanya Bhojan Ki Vidhi

Navratri 2024

Kanya Bhoj Ka Mahatva
 

Navratri 2024 Kanya Bhoj: चैत्र नवरात्रि हो या फिर शारदीय नवरात्रि, सभी में कन्या की पूजा और भोज का विधान है. नवरात्रि की अष्टमी और नवमी के दिन कन्याओं को भोग लगाने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है. पर क्या आप जानते हैं कि आखिर कन्या भोजन और  उनकी पूजा क्यों की जाती है. इसके क्या महत्व है. आइए जानते हैं....

नवरात्रि में कन्या भोज क्यों जरूरी है, क्या है इसकी पौराणिक मान्यता?

सनातन धर्म में लोग नवरात्रि में बहुत आस्था रखते हैं और ज्यादातर लोग नवरात्रि के दौरान माता रानी का व्रत रखकर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं. नवरात्रि में दुर्गा अष्टमी और नवमी के दिन व्रत का समापन होता है. भारत के कुछ राज्यों में दुर्गा अष्टमी के दिन नवरात्रि पूरे होने के उपलक्ष्य में माता दुर्गा की कढ़ाई की जाती है. जिसमें बिना मिर्च मसाले का भोजन बनाकर कन्याओं को खिलाया जाता है. साथ ही कई प्रकार के मीठे पकवान भी बनाए जाते हैं. वहीं कुछ राज्यों में नवमी के दिन नवरात्रि का समापन होने पर माता की कढ़ाई करते हैं.

कन्याओं को भोज क्यों करवाया जाता है

Kanya Bhoj Ka Mahatva: पौराणिक कथाओं के अनुसार इंद्रदेव ने भगवान ब्रह्मा से मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए कोई उपाय पूछा था. उस दौरान ब्रह्मा जी ने इंद्र को बताया था कि देवी को प्रसन्न करने के लिए कुमारी कन्याओं का पूजन करें और उनको भोजन कराएं। तभी से ये परंपरा सनातन धर्म में चली आ रही है कि नवरात्रि के दौरान माता रानी को प्रसन्न करने के लिए कन्याओ को भोजन कराया जाता है.

Kanya Bhoj Ka Mahatva

किस दिन कराया जाता कन्या भोज

​​​​​नवरात्रि की अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन के बाद उन्हें भोग-प्रसाद दिया जाता है. शास्त्रों के अनुसार कन्या भोजन के लिए अष्टमी का दिन सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है. दुर्गा अष्टमी के दिन भोजन कराने से मां दुर्गा अत्यधिक प्रसन्न होती हैं.

नवरात्रि में कन्या भोजन की विधि

कन्या भोज के लिए कन्याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित किया जाता है.
गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नामों के जयकारे लगाएं।
फिर कन्याओं को स्वच्छ स्थान में बैठाकर सभी के पैरों को दूध से भरी थाली में रखकर अपने हाथों से धोना चाहिए साथ ही उनका पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए।
इसके बाद इन कन्याओं के माथे पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए।
मां भगवती का ध्यान कर देवी रूपी कन्याओं को उनकी इच्छा अनुसार भोजन कराना चाहिए।
भोजन के उपरांत उन्हें अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा भेंट करें और उनका पैर छूकर आशीर्वाद लें. 

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किस उम्र की कन्याओं को भोजन कराया जाता है

कन्या भोजन के लिए 3 वर्ष से लेकर 9 वर्ष की आयु तक की कन्याओं को भोजन कराएं साथ ही एक छोटे से (लंगूर) लड़के को भोजन कराएं। लंगूर को भोजन कराना अति आवश्यक है क्योंकि लंगूर हनुमान जी का स्वरुप माना जाता है. उनके बिना कन्या भोजन अधूरा होता है. कन्याओं की संख्या कम और ज्यादा हो सकती है. लेकिन ऐसा माना जाता है कि देवी के 9 स्वरुप होने को वजह से कम से कम 9 कन्याओं को भोजन कराना चाहिए। यदि न हो तो 5 या 7 कन्याओं को भोजन करवा सकते हैं. शास्त्रों के अनुसार कन्या पूजन में नौ वर्ष की आयु से ज्यादा उम्र की कन्याओं को भोजन कराने की इतनी मान्यता नहीं है. इसके लिए 3 से 9 वर्ष की आयु की कन्याओं को ही भोजन कराया जाता है.

नौ से कम उम्र की कन्याओं को भोजन क्यों कराया जाता है

दो वर्ष की कन्या के पूजन से दुःख और दरिद्रता मां दूर करती हैं. तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति का स्वरुप मानी जाती है. चार वर्ष की कन्या के पूजन से धन-धान्य आता है और परिवार में सुख समृद्धि आती है. पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है. रोहिणी को पूजने से रोगों से मुक्ति मिलती है. छः वर्ष की कन्या को कालिका का रूप माना जाता है. कालिका रूप से विद्या, विजयश्री की प्राप्ति होती है. साथ वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का होता है. चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है. इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्ति होती है. नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है. इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है. साथ सभी कठिन कार्य सहजता के पूरे होते हैं.

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