Adi Shankaracharya Jayanti 2024: आदि शंकराचार्य जयंती तारीख व समय 2024
Adi Shankaracharya Jayanti 2024
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What are Vedas
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Adi Shankaracharya Jayanti 2024: आदि शंकराचार्य जयंती को भारतीय गुरु और दार्शनिक आदि शंकर की जयंती के रूप में मनाया जाता है. आदि शंकराचार्य जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष के दौरान पंचमी तिथि को मनाई जाती है. इस वर्ष यह तिथि रविवार 12 मई को है.
आदि शंकराचार्य जयंती के बारे में
हिंदू धर्म में भगवान शिव के साक्षात् अवतार माने जाने वाले आदि शंकर का जन्म वैशाख मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था. बहुत कम उम्र में ही वेद, पुराण और धार्मिक ग्रंथों में निपुण होकर पूरे भारत में सनातन परंपरा से जुड़े लोगों को एक सूत्र में बांधने वाले आदि शंकर की जयंती इस वर्ष रविवार 12 को मनाई जा रही है. हिंदू धर्म में अति पूजनीय माने जाने वाले आदिगुरु ने सनातन के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक भक्ति स्त्रोतों की रचना की थी.
Kaun Hain Adi Shankaracharya: शंकराचार्य जयंती को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र और धार्मिक उत्सवों में से एक माना जाता है. यह दिन आदि शंकराचार्य के जन्म का प्रतीक है. भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले आदिगुरू को जगतगुरु के नाम से भी जाना जाता है.
शंकराचार्य जयंती का महत्व
आदि शंकराचार्य ने सभी को अद्वैत वेदांत के विश्वास और दर्शन के बारे में पढ़ाया था. सभी को उपनिषद, भगवत गीता और ब्रह्मसूत्रों के प्राथमिक सिद्धांतों को सिखाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. उन्होंने हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने के लिए विभिन्न देशों की यात्रा की. देश के चार अलग-अलग कोनों में चार मठों की स्थापना की अर्थात दक्षिण में श्रृंगेरी, उत्तर में कश्मीर, पूर्व में पुरी और पक्षिम में द्वारका।
आदि शंकराचार्य से जुड़ी प्रमुख बातें
लगभग 2500 वर्ष पहले, एक समय था जब सद्भाव की अनुपस्थिति थी और मानव जाति पवित्रता और आध्यात्मिकता से वंचित थी. उस समय सभी ऋषियों और देवी देवताओं ने भगवान शिव से दुनिया को जगाने के लिए सहायता मांगी। उनकी सहायता के लिए भगवान शिव पृथ्वी पर जन्म लेने के लिए सहमत हुए. उन्होंने केरल के एक छोटे से गांव में शंकराचार्य के रूप में अवतार लिया। उनकी माता का नाम आर्यम्बा और पिता का नाम शिवगुरु था. वे दोनों एक ब्राह्मण दंपति थे. दोनों लंबे समय तक निः संतान थे. उन्होंने भगवान शिव की पूजा आराधना की जिसके बाद भगवान ने स्वप्न में उन्हें कहा कि वे उनके घर एक बालक के रूप में जन्म लेंगे लेकिन वह अल्पायु होगा। कम उम्र होने के बाद भी वह एक उत्कृष दार्शनिक के रूप में महान मान्यता प्राप्त करेगा।
आठ वर्ष की उम्र में कंठस्थ थे चारों वेद
शंकराचार्य के जन्म के बाद ही कम उम्र में उनके पिता का देहांत हो गया. लेकिन ज्ञान के प्रति उनकी जिज्ञासा ने उन्हें दार्शनिक और धर्मशास्त्री बना दिया। आठ वर्ष में ही उन्हें चारों वेद कंठस्थ हो गए थे और उन्होंने गृहस्थ जीवन को त्यागकर सन्यासी का जीवन अपना लिया था. बारह वर्ष की उम्र में ही उन्होंने शास्त्रों का ज्ञान हासिल कर लिया था. इसके बाद सोलह वर्ष की उम्र में उन्होंने ब्रह्मसूत्र भाष्य रच दिया था.
कैसे शुरू हुई शंकराचार्य पद की शुरुआत?
ज्योतिषियों का कहना है कि इस पद की शुरुआत आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी. उनकी समाधि के बाद से ही सनातन की रक्षा और प्रचार-प्रसार के लिए भारतवर्ष में शंकराचार्य पद के निर्माण की व्यवस्था की गई. इसके लिए देश में चारों कोनों में उपस्थित मठों में अलग-अलग शंकराचार्यों को पद ग्रहण कराया गया.
कैसे चुने जाते हैं शंकराचार्य?
शंकराचार्य बनने के लिए संन्यासी होना जरुरी होता है. संन्यासी बनने के लिए गृहस्थ जीवन का त्याग, मुंडन, अपना पिंडदान और रूद्राक्ष धारण करना बेहद जरुरी है. शंकराचार्य के पद के लिए ब्राह्मण होना जरुरी है. इसके अलावा तन, मन से पवित्र, जिसने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया हो, चारों वेद और छह वेदांगों का ज्ञाता होना अनिवार्य है. इसके बाद शंकराचार्यों के प्रमुख, आचार्य महामंडलेश्वरों और प्रतिष्ठित संतों की सहमति से ही शंकराचार्य की पदवी मिलती है.