सूर्य ग्रह ज्योतिष ,सूर्य ग्रह के उपाय सूर्य ग्रह का स्वभाव ,आपको कैसे पता चलेगा कि मेरा सूर्य कमजोर है या मजबूत?

Surya grah jyotish
  • सूर्य ग्रह कमजोर हो तो क्या होता है?

  • सूर्य ग्रह कमजोर होने से चेहरा निश्तेज हो जाता है । कोई भी काम सफल नही होता है ।

  • सूर्य भगवान को कैसे प्रसन्न करें?

  • सूर्य को जल चढ़ाने से क्या होता है?

सूर्य ग्रहों के स्वरूप के सम्बन्ध में तथा उस स्वरूप के कुण्डली में प्रयोग के सम्बन्ध में कुछ शब्द लिखे जा रहे हैं।

सूर्य-सूर्य गर्मी देता है, यह सबका अनुभव है। अतः सूर्य को आग माना गया है। जब मंगल, केतु आदि अन्य अग्निद्योतक ग्रहों के साथ मिलकर सूर्य लग्न, लग्नेश चन्द्र लग्न, चन्द्र लग्नेश आदि व्यवसाय द्योतक अंगों पर प्रभाव डालता है तो मनुष्य अग्नि से सम्बद्ध भट्ठी, बिजली का सामान, रेडियो आदि के काम करता है।
सूर्य ग्रह की जानकारी 
सूर्य प्रकाश देता है, यह प्रत्यक्ष ही है। अतः 'यत्पिण्डे तद्ब्रह्माण्डे के सिद्धान्तानुसार आंख का प्रतिनिधि है । जब सूर्य द्वितीय, षष्ठ अथवा द्वादश भाव में शत्रु राशि में स्थित होकर युति अथवा दृष्टि द्वारा मंगल, शनि आदि के पाप प्रभाव में होता है तो चक्षुहीन कर देता है। सूर्य यदि शत्रु राशि का होकर तथा अशुभ युक्त अथवा दृष्ट होकर अष्टम स्थान में पड़ जाए तो पिता की आंखों का नाश करता है, क्योंकि वह योग न केवल त्रिक स्थान में बना, अपितु पिता के भाव (नवम) से द्वादश स्थान में भी बना ।

3. सूर्य ग्रहों का राजा है। अतः संसार में राज्य गवर्नमेंट, नवाब, बड़े जमींदार आदि महान् सत्तारूढ़ व्यक्तियों आदि का प्रतिनिधित्व करता है यह राजा सूर्य यदि राज्य स्थान (दशम द्वितीय) अथवा राज्य कृपादर्शक स्थान (नवम) का स्वामी होकर बहुत बलशाली हो तो मनुष्य को राज्य अथवा अधिकार की प्राप्ति होती है ।

4. सूर्य चूंकि आकार आदि में भी महान है, अतः यदि द्वितीयेश होकर बलवान् हो तो बहुत धन देता है: तृतीयेश होकर बलवान् हो तो बहुत प्रतिष्ठित मित्र देता है: चतुर्थेश होकर बलवान् हो तो बड़ा खुला, रोशनीवाला मकाने देता है तथा छाती को खुला तथा बड़ा बनाता है: पंचमेश होकर बलवान् हो तो उसका पुत्र संसार में बहुत उन्नति पाता है तथा साहसी होता है। षष्ठेश हो तो उससे शत्रु महान् होते हैं, उसकी मां के छोटे भाई ऊंची पदवी पाते हैं: सप्तमेश होकर बलवान् हो तो मनुष्य किसी बड़े घराने से विवाह करता है। अष्टमेश होकर और बलवान हो तो बहुत आयु देता है; नवमेश हो और बलवान् हो तो राज्य अथवा महान् अधिकार देता है और सात्विक, धर्मशील बनाता है, दशमेश होकर बलवान हो तो शुभ कर्मों को करने वाला तथा महान कार्यों का कर्त्ता बनाता है. यदि लाभेश होकर बली हो तो राज्य देता है: द्वादशेश होकर बलवान् हो तो जहां प्रभाव डालता है उससे मनुष्य को पृथक कर देता है जैसे सप्तम सप्तमेश से सम्बन्ध करे तो स्त्री को छोड़ दे । यदि पंचम तथा गुरु से सम्बन्ध करे तो पुत्र को छोड़ दे, आदि । यदि लग्नेश होकर बलवान् हो तो राज्य देता है तथा सुख देता है ।

सूर्य ग्रह किसका कारक है ?

 सूर्य चूंकि प्रकाश देता है, इसलिए इस ग्रह का द्वितीयेश पंचमेश होकर बलवान् होना ऊंची विद्या देता है: परन्तु बुद्धिकारक बुध भी बलवान् होना चाहिए।

6. सूर्य अपने प्रकाश से सब वस्तुओं को पालता है। अतः इसे पिता कहते हैं (पाति इति पिता) । अतः पिता का विचार नवम भाव उसके स्वामी तथा सूर्य को लेकर करना चाहिए। यदि तीनों बलवान् हों तो पिता दीर्घायु, धनी, सुखी, स्वस्थ, उच्च पदवी से युक्त होता है तथा मनुष्य को पैतृक सम्पत्ति की प्राप्ति भी होती है ।

सूर्य आधार रूप हैं, अतः हड्डी का कारक है, अतः जब लग्नाधिपति होकर निर्बल हो तो हड्डी में चोट आदि से मनुष्य कष्ट पाता है।

 सूर्य चूंकि प्रकाश देता है, इसलिए इस ग्रह का द्वितीयेश पंचमेश होकर बलवान् होना ऊंची विद्या देता है: परन्तु बुद्धिकारक बुध भी बलवान् होना चाहिए।

सूर्य ग्रह को मजबूत कैसे करें ?

सूर्य ग्रह को मजबूत करने के लिए उगते सूर्य को।जल चढ़ाने से और उगते सूर्य को अपलक निहारने  से भी सूर्य ग्रह मजबूत होता है ।
पिता का आशीर्वाद लेने से भी सूर्य ग्रह मजबूत होता है और उनकी कृपा से सारे काम सफल हो जाते हैं ।


सूर्य पांच नम्बर राशि का स्वामी है। पांच नम्बर का अंग पेट है। यदि सिंह राशि, सूर्य, पंचम भाव, पंचमेश राय शनि तथा राहु से पीड़ित हो तो पेट में दीर्घ रोग होता है।

सूर्य जगत् की आत्मा है, जैसा कि वेदवाक्य है--सूर्य आत्मा जगतस्थुषश्च अतः जब भी किसी गूढ आन्तरिक, आधारभूत तथ्य का परीक्षण निरीक्षण होगा, उसका विचार सूर्य से किया जायेगा जैसे वर्णमाला | में हम जानते हैं कि व्यंजनों (क. ख. आदि) का उच्चारण बिना स्वरों की सहायता के नहीं हो सकता, यहां स्वर वर्णमाला के 'आत्मा', 'अधिष्ठान' आधाररूप होने से सूर्य द्वारा उल्लिखित होते हैं। स्वर हैं-अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ ।


सूर्य ग्रह मंत्र 

1. ऊं घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य:

2. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।

3. ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।

4. ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ ।

5. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः । 

सूर्य ग्रह कमजोर हो तो क्या होता है?

सूर्य ग्रह कमजोर होने से चेहरा निश्तेज हो जाता है । कोई भी काम सफल नही होता है ।


सूर्य भगवान को कैसे प्रसन्न करें?
सूर्य को जल चढ़ाने से क्या होता है?

सूर्य ग्रहों के स्वरूप के सम्बन्ध में तथा उस स्वरूप के कुण्डली में प्रयोग के सम्बन्ध में कुछ शब्द लिखे जा रहे हैं।

सूर्य-सूर्य गर्मी देता है, यह सबका अनुभव है। अतः सूर्य को आग माना गया है। जब मंगल, केतु आदि अन्य अग्निद्योतक ग्रहों के साथ मिलकर सूर्य लग्न, लग्नेश चन्द्र लग्न, चन्द्र लग्नेश आदि व्यवसाय द्योतक अंगों पर प्रभाव डालता है तो मनुष्य अग्नि से सम्बद्ध भट्ठी, बिजली का सामान, रेडियो आदि के काम करता है।
सूर्य ग्रह की जानकारी 
सूर्य प्रकाश देता है, यह प्रत्यक्ष ही है। अतः 'यत्पिण्डे तद्ब्रह्माण्डे के सिद्धान्तानुसार आंख का प्रतिनिधि है । जब सूर्य द्वितीय, षष्ठ अथवा द्वादश भाव में शत्रु राशि में स्थित होकर युति अथवा दृष्टि द्वारा मंगल, शनि आदि के पाप प्रभाव में होता है तो चक्षुहीन कर देता है। सूर्य यदि शत्रु राशि का होकर तथा अशुभ युक्त अथवा दृष्ट होकर अष्टम स्थान में पड़ जाए तो पिता की आंखों का नाश करता है, क्योंकि वह योग न केवल त्रिक स्थान में बना, अपितु पिता के भाव (नवम) से द्वादश स्थान में भी बना ।

3. सूर्य ग्रहों का राजा है। अतः संसार में राज्य गवर्नमेंट, नवाब, बड़े जमींदार आदि महान् सत्तारूढ़ व्यक्तियों आदि का प्रतिनिधित्व करता है यह राजा सूर्य यदि राज्य स्थान (दशम द्वितीय) अथवा राज्य कृपादर्शक स्थान (नवम) का स्वामी होकर बहुत बलशाली हो तो मनुष्य को राज्य अथवा अधिकार की प्राप्ति होती है ।

4. सूर्य चूंकि आकार आदि में भी महान है, अतः यदि द्वितीयेश होकर बलवान् हो तो बहुत धन देता है: तृतीयेश होकर बलवान् हो तो बहुत प्रतिष्ठित मित्र देता है: चतुर्थेश होकर बलवान् हो तो बड़ा खुला, रोशनीवाला मकाने देता है तथा छाती को खुला तथा बड़ा बनाता है: पंचमेश होकर बलवान् हो तो उसका पुत्र संसार में बहुत उन्नति पाता है तथा साहसी होता है। षष्ठेश हो तो उससे शत्रु महान् होते हैं, उसकी मां के छोटे भाई ऊंची पदवी पाते हैं: सप्तमेश होकर बलवान् हो तो मनुष्य किसी बड़े घराने से विवाह करता है। अष्टमेश होकर और बलवान हो तो बहुत आयु देता है; नवमेश हो और बलवान् हो तो राज्य अथवा महान् अधिकार देता है और सात्विक, धर्मशील बनाता है, दशमेश होकर बलवान हो तो शुभ कर्मों को करने वाला तथा महान कार्यों का कर्त्ता बनाता है. यदि लाभेश होकर बली हो तो राज्य देता है: द्वादशेश होकर बलवान् हो तो जहां प्रभाव डालता है उससे मनुष्य को पृथक कर देता है जैसे सप्तम सप्तमेश से सम्बन्ध करे तो स्त्री को छोड़ दे । यदि पंचम तथा गुरु से सम्बन्ध करे तो पुत्र को छोड़ दे, आदि । यदि लग्नेश होकर बलवान् हो तो राज्य देता है तथा सुख देता है ।

सूर्य ग्रह किसका कारक है ?

 सूर्य चूंकि प्रकाश देता है, इसलिए इस ग्रह का द्वितीयेश पंचमेश होकर बलवान् होना ऊंची विद्या देता है: परन्तु बुद्धिकारक बुध भी बलवान् होना चाहिए।

6. सूर्य अपने प्रकाश से सब वस्तुओं को पालता है। अतः इसे पिता कहते हैं (पाति इति पिता) । अतः पिता का विचार नवम भाव उसके स्वामी तथा सूर्य को लेकर करना चाहिए। यदि तीनों बलवान् हों तो पिता दीर्घायु, धनी, सुखी, स्वस्थ, उच्च पदवी से युक्त होता है तथा मनुष्य को पैतृक सम्पत्ति की प्राप्ति भी होती है ।

सूर्य आधार रूप हैं, अतः हड्डी का कारक है, अतः जब लग्नाधिपति होकर निर्बल हो तो हड्डी में चोट आदि से मनुष्य कष्ट पाता है।

 सूर्य चूंकि प्रकाश देता है, इसलिए इस ग्रह का द्वितीयेश पंचमेश होकर बलवान् होना ऊंची विद्या देता है: परन्तु बुद्धिकारक बुध भी बलवान् होना चाहिए।

सूर्य ग्रह को मजबूत कैसे करें ?

सूर्य ग्रह को मजबूत करने के लिए उगते सूर्य को।जल चढ़ाने से और उगते सूर्य को अपलक निहारने  से भी सूर्य ग्रह मजबूत होता है ।
पिता का आशीर्वाद लेने से भी सूर्य ग्रह मजबूत होता है और उनकी कृपा से सारे काम सफल हो जाते हैं ।


सूर्य पांच नम्बर राशि का स्वामी है। पांच नम्बर का अंग पेट है। यदि सिंह राशि, सूर्य, पंचम भाव, पंचमेश राय शनि तथा राहु से पीड़ित हो तो पेट में दीर्घ रोग होता है।

सूर्य जगत् की आत्मा है, जैसा कि वेदवाक्य है--सूर्य आत्मा जगतस्थुषश्च अतः जब भी किसी गूढ आन्तरिक, आधारभूत तथ्य का परीक्षण निरीक्षण होगा, उसका विचार सूर्य से किया जायेगा जैसे वर्णमाला | में हम जानते हैं कि व्यंजनों (क. ख. आदि) का उच्चारण बिना स्वरों की सहायता के नहीं हो सकता, यहां स्वर वर्णमाला के 'आत्मा', 'अधिष्ठान' आधाररूप होने से सूर्य द्वारा उल्लिखित होते हैं। स्वर हैं-अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ ।


सूर्य ग्रह मंत्र 

1. ऊं घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य:

2. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।

3. ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।

4. ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ ।

5. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः । 

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