संसार और सन्यास को एक साथ साधने की शिक्षा देती है श्रीमद्भगवद्गीता 

Shrimad Bhagwat Geeta teaches us to live together in the world and renunciation
संसार और सन्यास को एक साथ साधने की शिक्षा देती है श्रीमद्भगवद्गीता 
(डॉ. मुकेश "कबीर"-विभूति फीचर्स)  गीता विश्व का सबसे अद्भुत ग्रंथ है,यह हर धर्म के लोगों को जिंदगी जीना सिखाता है,यही कारण है कि दुनिया के हर  धर्म ग्रंथ पर गीता का प्रभाव देखा जा सकता है फिर चाहे बाइबिल हो या कुरान उनमें भी कहीं न कहीं गीता की बातें अवश्य मिल जाएंगी।असल में जिस वक्त गीता का जन्म हुआ तब दुनिया में सनातन के अलावा कोई और धर्म था ही नहीं इसलिए इसमें सिर्फ मानव जीवन के उपदेश ही मिलते हैं । इसमें सिर्फ धर्म और अधर्म दो पक्ष ही इसके दो केंद्र बिंदु दिखाई देते हैं । मानव जीवन भी सिर्फ धर्म और अधर्म दो बिंदुओं के बीच ही चलता है,

Shrimad Bhagwat Geeta teaches us to live together in the world and renunciation

गीता अधर्म के बजाए धर्म को बेहतर विकल्प मानती है इसीलिए मानव को धर्म पर चलने के लिए प्रेरित करती है । सबसे  खास बात तो यह है कि गीता के धर्म का वर्तमान के सम्प्रदायों से कोई संबंध नहीं है,सम्प्रदाय अलग बात है और धर्म बिल्कुल अलग । गीता में धर्म का संबंध हमारे स्वभाव से है न कि किसी संगठन,सम्प्रदाय या समूह से।हमारा स्वभाव ही हमारा धर्म है इसीलिए हर सम्प्रदाय में ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र चारों स्वभाव के लोग मिलते हैं । वर्तमान में  संप्रदाय को ही धर्म मानकर धर्म को बहुत संकीर्ण कर दिया गया है इसीलिए दुनिया में अराजकता और अशांति है और इसकी जड़ है सभी सम्प्रदायों का अहंकार ।

आई एम द बेस्ट की भावना जबकि सच यह है कि कोई किसी से श्रेष्ठ नहीं है, सभी समान हैं क्योंकि धर्म नितांत व्यक्तिगत भाव है। वर्तमान परिवेश में इसको समझें तो हम कह सकते हैं कि हर सम्प्रदाय के धर्म गुरु ब्राह्मण है, हर सम्प्रदाय में जितने भी नेता और सैनिक हैं वो क्षत्रिय हैं,जितने भी व्यापारी हैं वो वैश्य हैं और जितने भी कर्मचारी हैं वो शूद्र हैं फिर इस से फर्क नहीं पड़ता कि वो किस जाति या सम्प्रदाय के हैं लेकिन यह बात जरूर महत्वपूर्ण है वो अपने अपने काम स्वाभाविक रूप से करते हैं या पेट भरने के लिए करते हैं।     यदि हम अपने जॉब से सेटिस्फाई हैं और उत्साह से करते हैं तो वो ही हमारा स्वभाव या धर्म है लेकिन मन मारकर काम करते हैं तो वो हमारा स्वाभाविक काम नहीं है सिर्फ जीवन यापन के लिए हम वो काम कर रहे हैं और ऐसे लोगों को ही गीता पापी मानती है । यदि हम सिर्फ अपने पेट और परिवार को पालने के लिए ही काम करते हैं तो गीता कहती है कि ऐसे लोग पाप करते हैं

लेकिन वही काम हम खुश होकर करते हैं और जनकल्याण के लिए करते हैं तो वह धर्म बन जाता है, पुण्य हो जाता है, एक यज्ञ बन जाता है । आजकल यही देखने में ज्यादा आता है कि हमारा स्वभाव कुछ और है लेकिन हमें काम या जॉब कुछ और करना पड़ता है यही टेंशन क्रिएट करता है,इसी दुविधा से बचाने के लिए गीता कहती है कि स्वाभाविक कर्म ही करना चाहिए अर्थात जिसमें हमारा इंट्रेस्ट हो वही काम करना चाहिए जिससे शांति और संतुष्टि दोनों मिलती है ।आज समस्या यह है कि हमारे इंट्रेस वाले काम से हमें अर्निंग होती है या नहीं ? तब गीता के अनुसार उसका एक ही समाधान है कि हम परिणाम या अर्निंग की परवाह न करते हुए सिर्फ अपने काम के लिए ही काम करें बदले में जो भी मिले उसी में संतुष्ट रहें या फिर जिस काम में हमें अर्निंग होती है उसी में खुश रहने की कोशिश करें। खुशी ही सबसे बड़ी प्रेरणा है और टेंशन ही अवसाद और निष्क्रियता का जनक है। अर्जुन भी टेंशन में थे

क्योंकि उनको जॉब सेटिस्फेक्शन नहीं था और वे सब कुछ छोड़कर जान चाहते थे  तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि युद्ध ही तुम्हारा स्वभाव है युद्ध की छोड़कर कभी संतुष्टि नहीं मिलेगी, संन्यास अर्जुन का स्वभाव नहीं है,अर्जुन स्वभाव से क्षत्रिय है, योद्धा है, अर्जुन का स्वभाव ब्राह्मण का स्वभाव नहीं है इसलिए संन्यास से अर्जुन को संतुष्टि नहीं मिल सकती ।व्यक्ति का स्वभाव बचपन से ही दिख जाता है,अर्जुन बचपन से ही तीरंदाजी में खुश रहते थे, वो तीरंदाजी में इतने डूबे हुए थे कि उनको अपने टारगेट के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता था। श्रीकृष्ण भी अर्जुन को बचपन से ही जानते थे इसलिए उन्हें अर्जुन का स्वभाव पता था ।

वे जानते थे कि अर्जुन एक स्वाभाविक योद्धा हैं इसलिए उनको युद्ध ही करना चाहिए और इसके परिणाम के विषय में नहीं सोचना चाहिए। परिणाम के विषय में सोचने से ही सारा दुख और टेंशन क्रिएट होता है इसलिए गीता परिणाम के बजाय प्रैक्टिस पर जोर देती है । हम भी आम जीवन में यही महसूस करते  हैं कि सारा टेंशन परिणाम पर विचार करने से ही होता है फिर चाहे एग्जाम की तैयारी हो या जॉब में प्रमोशन की या फिर सैलरी की चिंता हो,उसके बजाए हम सिर्फ काम को एंजॉय करें फिर सैलरी या प्रमोशन मनमाफिक मिले या न मिले । गीता के अनुसार डूबकर काम करना ही योग है और यही संन्यास है और यही धर्म भी है इसीलिए गीता में किसी तरह की यौगिक क्रियाओं का वर्णन नहीं मिलता। वास्तव में योगासनों का अर्थ योग नहीं है बल्कि एकाग्रता से काम करना ही योग है इसीलिए श्री कृष्ण चाहते हैं कि अर्जुन योगी हो जाएं और अपना धनुष बाण चलाने में  ही इतने डूब जाएं कि उन्हें परिमाणों की सुध ही न रहे इसी से अर्जुन को शांति प्राप्त होगी और तनाव समाप्त होगा।

लेकिन जब श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करते हैं तो ज्यादातर लोगों को लगता है श्रीकृष्ण  के कारण ही युद्ध हुआ वरना युद्ध नहीं होता पर यह सच नहीं है क्योंकि अर्जुन यदि युद्ध से हट जाते तो भी युद्ध तो होना ही था ।उस समय शेष सभी योद्धा तो लड़ने को उतावले थे ही,वे अच्छा बुरा कुछ नहीं सोच रहे थे,उनके मन में तो सिर्फ अपने शत्रु का विनाश ही था,वो लोग दृढ़ निश्चयी थे कि युद्ध करना ही है सिर्फ अर्जुन ही कन्फ्यूज्ड थे और  कन्फ्यूज्ड लोगों के लिए  गीता अमृत ही  है । सही समाधान है शुद्ध औषधि है। श्रीकृष्ण जानते थे कि अन्य योद्धाओं के कारण युद्ध तो टल नहीं सकता फिर अर्जुन क्यों पलायन करे इसलिए अर्जुन की पलायनवादी सोच को दूर करने के लिए ही श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया। इसमें अर्जुन सिर्फ एक माध्यम हैं । उनके माध्यम से हर मानव को श्रीकृष्ण का उपदेश है गीता क्योंकि मानव जीवन में इस तरह की स्थितियां सबके साथ निर्मित होती है,कई बार हम भी सब कुछ छोड़कर दूर जाना चाहते हैं,काम धंधा छोड़कर भागते हैं यहां तक कि घर परिवार को भी छोड़कर कहीं एकांत में चले जाना चाहते हैं

लेकिन हम छोड़कर जा नहीं पाते क्योंकि जाएंगे कहां ? कहीं भी जाएं तो पेट भरने के लिए काम तो करना ही पड़ेगा । यही गीता कहती है कि बिना काम किए शरीर का पोषण संभव नहीं है इसलिए जब काम करना ही है तो वर्तमान काम को छोड़कर क्यों जाना ? वर्तमान काम ही हमारी नियति है इसलिए इसको पूरे मन से करें और मन को भी वर्तमान में रखे क्योंकि भूत और भविष्य का विचार ही दुख का कारण है । भविष्य की चिंता में हम रिजल्ट ओरिएंटेड हो जाते हैं और रिजल्ट ओरिएंटेड होने का ही गीता विरोध करती है क्योंकि रिजल्ट ओरिएंटेड होने से निगेटिविटी और डिप्रेशन आने लगते हैं फिर सारे काम रुक जाते हैं । कई बार परिणाम पर ज्यादा विचार करने से बीमारी भी होने लगती हैं। आजकल बीपी और डायबिटीज का सबसे बड़ा कारण यही है कि हम परिणाम की चिंता से घिरे रहते हैं जबकि परिणाम को छोड़कर काम करें तो शांति और खुशी मिलने लगती है। काम क्या करें और काम का चयन कैसे करें इस तरह की दुविधाओं से बचने के लिए हमें गीता अवश्य पढ़ना चाहिए।

दुनिया में गीता से बड़ी कोई मोटिवेशनल बुक नहीं है, बल्कि सारी मोटिवेशन बुक्स की जननी भगवद्गीता ही है। गीता ही एकमात्र ग्रंथ है जो हमें संसार और संन्यास एक साथ साधने की शिक्षा देती है । धर्म और अधर्म में संतुलन बनाने की दिशा देती है और हमारा धर्म क्या है और हमें करना क्या चाहिए इसकी शिक्षा भी गीता में बहुत सरल तरीके से मिल जाती है। गीता इतनी सरल और सरस क्यों है क्योंकि यह स्वयं भगवान के ही उद्गार से जन्मी है। भगवान कृष्ण पूर्ण ब्रह्म है पूर्ण पुरूषोतम हैं। वे इस जगत की और परा जगत की हर बात जानते हैं,इस दुनिया में जो कुछ भी हमें दिखाई या सुनाई देता है श्रीकृष्ण वह सब जानते हैं।

उनकी बाधाओं को भी जानते हैं और उन बाधाओं को पार कैसे करना है यह भी जानते हैं इसलिए वह स्वयं  का अनुभव ही अर्जुन को बताते हैं और अर्जुन के माध्यम से पूरी मानव जाति को बताते हैं। इसीलिए मानव कल्याण का ग्रंथ है भगवद्गीता। गीता को अवश्य पढ़ें,और अन्य लोगों को भी प्रेरित करें गीता को पढ़ना ज्ञान यज्ञ है और गीता का प्रचार करना ईश्वर की सबसे बड़ी सेवा।इसका वर्णन स्वयं भगवान ने अठारहवें अध्याय में किया है इसलिए नियमित रूप से गीता पढ़े और पढ़ाएं तभी गीता की सार्थकता होगी और गीता जयंती भी सार्थक होगी। सभी को गीता जयंती की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। (विभूति फीचर्स) (लेखक गीतकार हैं)

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