भगवान के प्रति भावों का समर्पण करना ही भागवत है: रविशंकर 
- श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का सप्तम- दिवस

Bhagwat gita gonda
 ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय 

गोण्डा। 
चौक बाजार के ठठेरी में लक्ष्मी ड्रेसेज परिसर में चल रही श्रीमद्भागवत भागवत के साप्ताहिक परायण  में प्रवचन करते हुए कथा व्यास स्वामी रविशंकर महाराज ने श्रीमद्भागवत पुराण की महत्ता स्पष्ट करते हुए कहा कि भागवत का शाब्दिक  अर्थ होता है  अपने निज भाव को भगवान के प्रति समर्पित, समाहित करना होता  है। भागवत पुराण में 18 हजार श्लोकों की रचना महर्षि वेदव्यास ने  की है। सुखदेव जी महाराज  इस पावन ग्रंथ के प्रथम  प्रवक्ता  हैं। भागवत ग्रंथ को स्वयं भगवान कृष्ण का स्वरूप माना जाता है । 

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    सप्तम दिवस सुदामा चरित्र की कथा कहते हुए व्यासपीठ से रविशंकर महाराज  ने कहा कि सुदामा कर्म योगी की भांति भगवान का भजन करते थे। गृहस्थी में अभाव  परंतु भक्ति में भाव था।  सुदामा चरित्र आदर्श चरित्र माना गया है।  जीवन में दो संबंध परिवर्तनकारी है  पहला- मित्रता दूसरा गुरु प्राप्त हो जाना। भगवान परम मित्र हैं और भगवान ही परम गुरु है।

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   पंचवटी श्री सीताराम आश्रम की ओर से संचालित संस्कारशाला के बटुक बच्चों ने वैदिक संस्कृति की अलख जगाते हुए हनुमान चालीसा का पाठ एवं विभिन्न मंत्रों का सस्वर वाचन किया।

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