Varuthini Ekadashi 2024: क्या है वरुथिनी एकादशी का महत्व और पूजा की विधि
Updated: Apr 15, 2024, 12:13 IST
Varuthini Ekadashi 2024 date vrat katha
धर्म ज्योतिष डेस्क , ऐसी मान्यता है कि जितना पुण्य कन्यादान और वर्षों तक तप करने से मिलता है, उतना ही पुण्य वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने पर भी मिलता है. यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों का नाश करने वाली और अंत में मोक्ष की प्राप्ति कराने वाली है. सभी एकादशियों की तरह ये भी भगवान विष्णु के लिए समर्पित है. यह हर वर्ष बैसाख मास की ग्यारस ( कृष्णपक्ष ) को आती है. इस बार यह तिथि 4 मई को है.
Varuthini Ekadashi Kab Hai: शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है. यह सब पापों को नष्ट करने वाली, सौभाग्य तथा अंत में मोक्ष देने वाली मानी जाती है. सभी एकादशियों की तरह यह भी भगवान विष्णु को समर्पित है. इस वर्ष ये एकादशी 4 मई को पड़ रही है. इस दिन शास्त्रीय विधि से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. एकादशी व्रत के प्रभाव से मानव मन शांत रहता है. साथ व्रत रखने वाले पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है.
वरुथिनी एकादशी के व्रत से क्या फल मिलता है?
Varuthini Ekadashi Ka Kya Mahatwa Hai: वरुथिनी एकादशी में व्रत, जप-तप, दान, पुण्य करने से मानव भगवान श्री हरि विष्णु का सानिध्य प्राप्त कर जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है. साथ ही उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी में ब्रह्म हत्या सहित समस्त पापों को दूर करने की शक्ति होती है, इस दिन मन, कर्म और वचन द्वारा किसी भी प्रकार का पाप करने से बचने का प्रयास करना चाहिए, साथ ही तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। पांच ज्ञानेन्द्रिया, पांच इन्द्रियां और एक मन इन ग्यारहों को जो साध ले, वह प्राणी एकादशी के समान पवित्र हो जाता है.
पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि जितना पुण्य कन्यादान और वर्षों तक तप करने से मिलता है, उतना ही पुण्य वरुथिनी एकादशी का व्रत रखने से भी मिलता है. यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली और अंत में मोक्ष की प्राप्ति कराने वाली है. यह एकादशी दरिद्रता को दूर करने वाली और कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली मानी जाती है. इस दिन व्रत रखने से 10 हजार वर्षों के तप के बराबर फल मिलता है. कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय एक मन स्वर्णदान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल वरुथिनी एकादशी के व्रत से मिलता है. वरुथिनी एकादशी का व्रत लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करता है.
वरुथिनी एकादशी का व्रत कैसे रखें?
Varuthini Ekadashi Ki Pooja Aur Vrat Ki Vidhi: वरुथिनी एकादशी के दिन चतुर्भुज आकार की भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें साथ ही यथाशक्ति श्री हरि के मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जाप करते रहना चाहिए। रोली चंदन, अक्षत, पीले पुष्प, ऋतुफल, मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से श्री हरि की आरती उतारकर दीपदान करना चाहिए। इस दिन विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करना बहुत शुभ होता है. भक्तों को परनिंदा, छल-कपट, द्वेष की भवनाओं से दूर रहकर पीतांबरधारी भगवान विष्णु को ध्यान में रखते हुए भक्तिभाव से उनका भजन करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए।
Varuthini Ekadashi Kya Hai: सनातनी शास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मांधाता नामक राजा का राज्य था. वह आति दानशील और तपस्वी राजा थे. एक समय जब वे जंगल में तपस्या कर रहे थे, उसी समय जंगली भालू आकर उनका पैर घसीट कर वन में लेकर चला गया. तब राजा घबरा गए. उन्होंने तपस्या धर्म का पालन करते हुए उन्होंने क्रोध न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की. राजा की पुकार सुनकर भगवान श्री हरि वहां प्रकट हुए और सुदर्शन चक्र से भालू का वध कर दिया। तब तक भालू राजा का एक पैर खा चुका था. इससे राजा मांधाता बहुत दुखी हो गए. भगवान विष्णु ने राजा की पीड़ा देखकर कहा कि- मथुरा जाकर तुम मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखो, इसके प्रभाव से भालू ने तुम्हारा जो अंग काटा है, वह वापस ठीक हो जाएगा। यह जो भी हुआ है तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध है. राजा ने भगवान की आज्ञा अनुसार यह व्रत पूरी श्रद्धा के रखा और अपने कटे हुए पैर को वापस प्राप्त कर लिया।