हनुमान जी ने लंका में जब देखी थी रावण की थाली तभी जान लिया था कि अब उसकी मौत करीब 

दही के फायदे

जूठन में दही क्यों नही छोड़ी जाती है ? क्या कहती है सनातन संस्कृति

रावण की थाली देख कर ही हनुमान जी ने जाना था कि अब रावण का समय निकट है 

रावण के किचन में हनुमान जी ने देखा कि रावण ने अपने खाने में दही छोड़ दिया था जिसे. देख कर हनुमान जी ने समझ लिया था कि अब रावण की मृत्यु निकट है । 


सनातन संस्कृति में खाने के बाद जूठन न छोड़ने की संस्कृति रही है माना जाता है कि इससे धन की हानि होती है लेकिन खाने के साथ मे  दही खाई जाती है और दही की पौष्टिकता के कारण खाने का यह एक भाग ही रहता है लेकिन दही को खाने में छोड़ने से बहुत बड़ा नुकसान होने की संभावना बनती है ।

जैसा कि प्रवचन में प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि हनुमान जी जब लंका गए तो उनको जब भूख लगी विभीषण से मिलने के बाद व लंका की उसकी चरण में गए जहां रावण का खाना बनता था और उन्होंने देखा कि रावण ने अपनी थाली में दही छोड़ दिया था और उसी दिन उनको लगा था कि खाने में दही छोड़ने के बाद जीवन की हानि होती है इसलिए उन्होंने देखा कि रावण का अंत अब नजदीक है ।

राम कथा वाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने अपने राम कथा में इस बात का जिक्र करते हुए कहा कि पहले के बुजुर्ग दही जिस कटोरी में खाते थे अगर थोड़ी भी उसमें बच गई है तो उसको पानी डालकर पी जाते थे अली की कटोरी में दही जूठन के रूप में बिल्कुल सही नहीं छोड़ते थे जिससे यह माना जाता था कि इससे जीवन का क्षय होता है यानी की आयु में कमी होती है।


इसलिए सनातन संस्कृति में कहा जाता है कि खाने में जूठन बिल्कुल नहीं छोड़ना चाहिए और खास करके दही भी जिसमें पात्र में जिस भी कटोरी में खाते हैं उसमें दही नहीं लगा होना चाहिए यानी कि खाना जब भी खाएं उसके साथ में दही भी है उसको भी जूठन के रूप में छोड़ना नहीं चाहिए।

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