संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय में हुआ संस्कृत महोत्सव का आरम्भ
 

Sanskrit festival started in Sanskrit and Prakrit language department of Lucknow University
Sanskrit festival started in Sanskrit and Prakrit language department of Lucknow University
उत्तर प्रदेश डेस्क लखनऊ(आर एल पाण्डेय )। संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ में आज दिनाङ्क 16.08.24 को संस्कृत सप्ताह के अवसर पर संस्कृतमहोत्सव के उद्घाटन समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्यातिथि संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के विभागाध्यक्षचर प्रो. रामसुमेर यादव जी थे।

कलासंकाय के अधिष्ठाता तथा संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग के पदेनाध्यक्ष प्रो. अरविन्द मोहन ने संस्कृत की साम्प्रतिक उपादेयता को लेकर अध्यक्षीय उद्बोधन किया। उन्होंने आग्रह किया कि संस्कृत भाषा में आज अर्थशास्त्र विषयक कार्य क्यों नहीं हो रहा। केवल प्राचीनता की चर्चा मात्र करने से ही संस्कृत भाषा का उद्धार नहीं होगा। संस्कृत बोलने के लाभ हमें जनमानस तक पहुँचाने होंगे। संस्कृत जब तक व्यवहार में नहीं होगी तब तक कोई विश्वस्तरीय शोध कार्य सम्भव नहीं है। चूँकि भाषा सीखने की उम्र आरम्भिक होती है, लेकिन आज बहुत बड़ी अवस्था में जाकर संस्कृत भाषा या अंग्रेजी आदि अन्य भाषाओं को सीखने में युवाओं की बहुत बडी शक्ति लग रही है।

नये उपायों को सोचने, आविष्कारों को करने की उम्र 20-25 की होती है। जो आजकल केवल डिग्री प्राप्त करने अथवा नयी भाषा सीखने में लग रही है। यदि संस्कृत भाषा मातृभाषा होगी, तो संस्कृत के माध्यम से चिन्तन होने के कारण नये आविष्कारों को करने का सामर्थ्य भी प्राप्त होगा।संस्कृत, संस्कृति, विरासत, विज्ञान और विकास का सन्तुलन बना कर बढ़ना होगा। आपने कहा कि संस्कृत के ग्रंथों एवं पुराणो में विरासत समाहित है । संस्कृत के ज्ञान के बिना विरासत को संजोया नहीं जा सकता है।

मुख्यातिथि प्रो. राम सुमेर यादव ने संस्कृत को विशिष्ट चिन्तन की भाषा बताया। उन्होंने कहा कि संस्कृतभाषा भाषा-विज्ञान का मूल है। संस्कृत अध्यात्म की भाषा है। संस्कृत शान्ति की भाषा है। संस्कृत ज्ञान-विज्ञान का वह भण्डार है, जिसका लोहा समय-समय पर देश-विदेश के बड़े-बड़े दिग्गज विद्वानों ने माना है। संस्कृत में जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है। संस्कृत में शोध को अब वस्तुतः व्यावहारिक समस्याओं के समाधान से जोड़ना होगा। संस्कृत भाषा को अन्य विषयों से जोड़ने की परम आवश्यकता है। यह एक व्यावहारिक समस्या है कि जो संस्कृत जानता है, वह आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से परिचित नहीं है और जो आधुनिक ज्ञान-विज्ञान का ज्ञाता है, वह संस्कृत से अपरिचित है।

हमें निकट भविष्य में भारत को भव्य बनाने के लिए अपने बीच की इस समस्या का समाधान ढूंढना ही पड़ेगा। इसके अभाव में संस्कत  को जनभाषा बनाना अत्यन्त दूरूह कार्य है।अतः आज आवश्यकता है कि हम इस संस्कृत सप्ताह के अवसर पर संस्कृत महोत्सव का आयोजन करते हुए संस्कृत को अपने जीवन में अपनाने का दृढ़ संकल्प लें। हम संस्कृत सुनें, संस्कृत पढ़ें और संस्कृत बोलें भी। आज वास्तविक जीवन से संस्कृत का श्रवण और पठन लुप्तप्राय है, जिससे संस्कृत भाषा एक विषय बन कर रह गयी है। जिस भाषा में लोक-व्यवहार नहीं होता है उस भाषा का ह्रास हो जाता है।


उद्घाटन समारोह का आरम्भ वैदिक एवं लौकिक मङ्गलाचरण पूर्वक दीप-प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। समारोह में पधारे हुए अतिथिओं का वाचिक स्वागत संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के समन्वयक डॉ. अभिमन्यु सिंह ने किया। उन्होंने महनीय विद्वानों का स्वागत करते हुए कहा कि संस्कृतमहोत्सव अपने आत्म-गौरव को पुनः प्राप्त करने का अवसर है। संस्कृत महोत्सव जैसे आयोजनों से हम प्राचीन भारत में होने वाले विभिन्न वसन्तोत्सव आदि आयोजनों के वैभवों का स्मरण कर सकते हैं। वस्तुतः ऐसे आयोजन संस्कृत को भारत के प्रत्येक जन से परिचय कराने वाले सिद्ध होंगे। उद्घाटन समारोह का बीज वक्तव्य देते हुए डॉ. सत्यकेतु ने संस्कृतमहोत्सव के आयोजन के प्रयोजन एवं विषयों से अवगत कराया।

 धन्यवाद ज्ञापन डॉ. ऋचा पाण्डेय ने किया । इस आयोजन में संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के विद्यार्थिओं श्रद्धा, कविता, सृष्टि तथा हर्षित ने भी अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किए । कार्यक्रम का सञ्चालन डॉ. अशोक कुमार शतपथी ने किया।इस अवसर पर संस्कृत विभाग तथा ज्योतिर्विज्ञान विभाग के सहायक अध्यापक डॉ अनिल कुमार पोरवाल, डॉ विष्णुकान्त शुक्ल, डॉ अनुज कुमार शुक्ल, एवं संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग के सहायक आचार्य डॉ० भुवनेश्वरी भारद्वाज, डॉ अशोक कुमार शतपथी, डॉ गौरव सिंह, डॉ. ऋचा पाण्डेय अध्यापकों सहित अनेक अन्य अध्यापक एवं लगभग 100 से अधिक छात्र छात्राएं भी उपस्थित रहें।

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