78 वें स्वतंत्रता दिवस की  हार्दिक बधाइयाँ: खोसला

Heartiest congratulations on 78th Independence Day: Khosla
Heartiest congratulations on 78th Independence Day: Khosla
उत्तर प्रदेश डेस्क लखनऊ (आर एल पाण्डेय)। भीम ब्रिगेड ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राष्ट्रीय सैनिक संस्था एनसीआर के संयोजक राजीव जोली खोसला में भारत वासियों को 78 में स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं दी और कहा कि हम आज किस मोड़ पर खड़े हैं पढ़ो और  सोचो।


 आज देश की आज़ादी के 77 वर्ष पूर्ण हुए और हम - सभी लोग 78वाँ  स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं लेकिन मेरा मन , हृदय अशांत है।हर्ष और उल्लास का आकाश और निराशा की गहरी खाई। उल्लास और निराशा एक साथ नहीं आते। लेकिन स्वतंत्रता दिवस में दोनों एक साथ हैं। हम भारत के लोगों ने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त की थी। भारत की स्वतंत्रता किसी क्रांति का परिणाम नहीं है।ब्रिटिश सत्ता ने पराजित क़ौम की तरह भारत नहीं छोड़ा। स्वाधीनता भी ब्रिटिश संसद के भारतीय स्वतंत्रता क़ानून  1947 से मिली।भारतीय संविधान में ब्रिटिश संसद द्वारा पारित 1935 के अधिनियम के ही अधिकांश तथ्य हैं।


ब्रिटिश संसद ने 1892, 1909,1919तक अनेक बार नये अधिनियम बनाए। वे भारत पर शासन के अपने औचित्य को क़ानूनी व लोकतंत्रिय जामा पहना रहे थे।1935उनका अंतिम अधिनियम था। अनेकों अमर बीर सपूतों के बलिदानों के परिणाम स्वरूप स्वतंत्रता प्राप्त होने के पश्चात् भारत ने भारत शासन अधिनियम 1935 को आधार बना कर भारी गलती की। डाक्टर अम्बेडकर ने अपना स्पष्टीकरण दिया था कि उनसे इसी अधिनियम को आधार बनाने की अपेक्षा की गई थी। मेरी दृष्टि में भारत की संसदीय व्यवस्था , प्रशासनिक तंत्र व प्रधान मंत्री ब्रिटिश व्यवस्था की उधारी हैं। भारत ने अपनी संस्कृति व जन गण की इच्छा के अनुरूप अपनी राज व्यवस्था नहीं गढ़ी । स्वतंत्रता , संविधानऔर गणतंत्र संकट में है। आज संसद और विधानमंडलों के स्थगन शोर शराबे और करोड़ों रुपए के खर्च विस्मयकारी हैं ।संविधान में सौ से अधिक संशोधन हो चुके हैं।संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है।

राजनीति भ्रष्ट उद्योग बन गयी है । संविधान के शपथी जेल जा रहे हैं। अनेक जेल से चुनाव लड़ रहे हैं, जीत भी रहे हैं।एक मुख्य मंत्री जेल में हैं फिर भी पद त्याग नहीं रहे हैं। अदालतें और संविधान मूक एवं वधिर हैं।निराशा की खाईं गहरी है , राष्ट्रीय उत्सव अब उल्लास नहीं पाते।संवैधानिक संस्थाएँ धीरज नहीं देतीं। आमजन हताश और निराश हैं। दूर दर्शन चैनलों और राजनीतिक अड्डों में ही स्वतंत्रता के उल्लास का जग मग आकाश है। 15-20 प्रतिशत लोग ही स्वतंत्रता के माल से अघाए हैं। शेष 80 प्रतिशत बेरोज़गारी , भुखमरी में हैं।विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र के स्वतंत्रता की 78वीं वर्षगाँठ का उल्लाश स्वाभाविक है ,

लेकिन उपरोक्त के अतिरिक्त निराशा की खाइयाँ ढेर सारी हैं। सीमाएँ अशांत हैं। चीन की आखें लाल हैं।पाकिस्तान , बांगला देश अशांत है और वहाँ अल्प संख्यक हिंदुओं , सिखों , जैन , बौद्ध आदि की संयोजित हत्याएँ हो रही हैं।हमारे सत्ताधीश निष्क्रिय हैं। विपक्ष किंकर्तव्य विमूढ़ है।विदेशी घुसपैठ जारी है।आतंकवादी भारतीय गणतंत्र से युद्धरत है , देश के भीतर भी आतंकवादी हैं। माओवादी  संविधान और गणतंत्र तथा स्वतंत्रता  के विरुद्ध हमलावर  हैं, देश का बड़ा हिस्सा रक्तरंजित है। अलगाववादी सक्रिय हैं। केंद्र को चुनौती देते राज्य हैं और राज्यों के अधिकारों पर आक्रामक केंद्र।संघीय ढाँचे को ख़तरा है। लाखों किसान आत्म हत्या कर चुके। राजनीति गणतंत्र और संविधान के प्रति निष्ठावान नहीं। संसद का तेज घटा है।कार्यपालिका भ्रष्टाचार की पर्यायवाची हो गई है। गण तंत्र और संविधान के शपथी ही संविधान और स्वतन्त्रता के सामंत बन गये हैं। बावजूद इसके अर्थव्यवस्था मोदी मय है और राजनीतिक व्यवस्था स्वतंत्रता और गणतंत्र विरोधी है । 78वाँ   स्वतंत्रता दिवस राष्ट्रीय आत्मचिंतन का पर्व होना चाहिए।

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