कनक मल गांधी आज सुबह चल बसे हमारे बीच अब वे नहीं रहे:विभा गुप्ता वर्धा
वर्धा में महारोगी सेवा समिति , मगन संग्रहालय समिति, असेफा, जैसी कई संस्थाओं में सदस्य बनकर उनका निरंतर मार्गदर्शन करते रहे. अण्णासाहेब सहस्त्रबुद्धे के मानस पुत्र के रूप में उन्होने और जस बहन ने उन्हें परिवार के प्रमुख सदस्य के नाते श्रद्धा व प्रेम दिया और अखरी समय तक अपनेपन से निस्वार्थ सेवा की . कनक भाई तीन घण्टे शारीरिक श्रम औऱ एक घण्टे आध्यात्मिक पठन के बिना भोजन नहीं करते थे.
वे निपुण खेतिहर थे इसलिए उनका बागीचा फल, सब्जियों, मसालों औऱ वन औषधियों से भरापूरा रहता था. पेटी चरखे पर सहजता से बिना टूटे समान सूत कातने वालों अग्रिम में से वे एक थे. जितना हो सके वे पैदल चलते ,लंबा रास्ता हो तो उनका स्कूटर जिन्दाबाद पर परिश्रम में कोई कोताही नहीं. उन्होंने शरीर और मन को ऐसा नियंत्रित किया की जितनी भी गर्मी क्यों ना हो वे अपने कार्यालय में कभी पंखा नहीं चलते और सर्दी में ना के बराबर ऊनी कपड़ा पहनते. ज्यादातर वे अपने हाथ से कते सूत के मोटी खादी के कपडे पहनते, वह भी केवल जस बहन के हाथ से सिले कपड़े.
अथक शारीरिक श्रम से तपा भाईजी का शरीर हमेशा तना, गठा ,स्वस्थ औऱ निरोगी रहा. जबरदस्त स्मरण शक्ति, अध्ययनशील, हिसाब- किताब में निपुण, निरंतर अभ्यासू , उल्टे हाथ से तेज़ी से सुन्दर अक्षर लिखने वाले कनक भाई ने कई रिपोर्ट, दस्तावेज, और manuscript तैयार किए. इसी संग्रह से पिछले 15 सालों में उन्होंने अकेले ही 8 पुस्तकें प्रकाशित की..ऐसे कर्मठ, जुझारू, उत्साही, जिज्ञासु कनक भाई जब भी मिलते तब उनके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान खेल जाती. सब जानते हुए भी वे मुझसे इधर-उधर की जानकारी लेते और फिर घोषित करते की तुम्हारी जानकारी में कहाँ और क्या कमी है.
आज मेरे सामने उभर आता है उनका एक मनोहारी चित्र - सेवाग्राम में अपने फूल- पौधों से भरे साफ़ आंगन में सूखते मसालों की टोकरियों और खेती के धुले हुए औजारों के बीच बड़ी पत्थर की हाथ चक्की पर आटा पीसते कनक भाई और पास में एक छोटे मूड़े पर बैठी लेख पढ़ कर सुनाती हुई जस बहन. आज आंसू नहीं रुक रहे बहुत खालीपन अनुभव कर रही हूँ. विनोबा विचार प्रवाह की ओर से श्रद्धांजलि ईश्वर उन्हें शांति दे